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भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कहा, पाकिस्तान ने तीन युद्ध और हजारों आतंकवादी हमले करके सिंधु जल संधि की भावना का उल्लंघन किया है।

24 May 2025 by
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कहा, पाकिस्तान ने तीन युद्ध और हजारों आतंकवादी हमले करके सिंधु जल संधि की भावना का उल्लंघन किया है।
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संयुक्त राष्ट्र में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए स्पष्ट किया है कि उसने न केवल तीन युद्ध छेड़े हैं, बल्कि हजारों आतंकवादी हमलों के जरिए भी ‘सिंधु जल संधि’ की भावना का बार-बार उल्लंघन किया है।


🌊 सिंधु जल संधि: एक ऐतिहासिक समझौता

1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) पर हस्ताक्षर हुए थे। यह समझौता उस समय का एक महत्वपूर्ण कदम था, क्योंकि दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव के बावजूद जल संसाधनों का शांतिपूर्ण और न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने के लिए यह संधि की गई थी। भारत ने संधि की शर्तों का हमेशा पालन किया और उसके तहत अपनी जिम्मेदारियों को निभाया है।


⚔️ तीन युद्ध और हजारों हमले: पाकिस्तान की दोहरी नीति

संयुक्त राष्ट्र में भारत ने यह उजागर किया कि:

  • पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ तीन युद्ध — 1965, 1971 और 1999 (कारगिल) — छेड़े।
  • पाकिस्तान की सरज़मीं से भारत पर हजारों आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया गया, जिनमें मुंबई 26/11 हमला, पठानकोट, उरी, और पुलवामा जैसे घातक हमले शामिल हैं।

यह तथ्य दर्शाते हैं कि पाकिस्तान ने न केवल शांति की प्रक्रिया को बार-बार झटका दिया, बल्कि सिंधु जल संधि की मूल भावना — विश्वास और सहयोग — का भी उल्लंघन किया है।


भारत का संतुलित लेकिन सख्त संदेश

भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश दिया है कि:

  • उसने तकनीकी रूप से संधि के सभी प्रावधानों का पालन किया है।
  • लेकिन जब बार-बार युद्ध और आतंकवाद के ज़रिए शांति की भावना को ठेस पहुंचाई जाती है, तो किसी भी समझौते की पुनर्समीक्षा (review) करना स्वाभाविक है।


🌍 वैश्विक संदर्भ में भारत की कूटनीति

इस बयान से भारत ने न केवल अपनी नैतिक स्थिति मजबूत की है, बल्कि यह भी दिखाया है कि वह एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में अपने समझौतों का सम्मान करता है — जब तक कि दूसरा पक्ष उस भावना का दुरुपयोग न करे।


निष्कर्ष

भारत का यह रुख यह दर्शाता है कि अब समय आ गया है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह पहचानना चाहिए कि शांति और सहयोग एकतरफा नहीं हो सकते। यदि पाकिस्तान जैसी सरकारें समझौतों को कागज़ी दस्तावेज़ मानती हैं और ज़मीनी स्तर पर उसका उल्लंघन करती हैं, तो भारत को भी अपने हितों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।


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